Free and Premium Blgger Templates

मानव शरीर की संरचना (Structure of human body) अध्यावर्णी तंत्र (Integumentary system)

मानव शरीर के तंत्र (system of human body)- जैव जगत के संगठन के क्रम में जीवधारियों की मूल इकाई जैव कोशिका है | अनेक कोशिकाओं के संगठन में ऊतकों (tissues) तथा किसी विशेष जैव प्रक्रिया के संचालन हेतु अंगों (organs) का निर्माण होता है | अंगों के समूह से तंत्र (systems) बनते हैं तथा जीवधारी के सभी तंत्र मिलकर जीवन यापन में सहायक होते हैं
        मानव शरीर के प्रमुख तंत्र निम्नवत हैँ |
1. आध्यावर्णी तंत्र (Integumentary system)
2. पाचन तंत्र (Digestive system)
3. श्वसन तंत्र (Respiratory system)
4. परिसंचरण तंत्र (Circulatory system)
5. उत्सर्जन तंत्र (Excretory system)
6. नियंत्रण एवं समन्वयन तंत्र (Control and coordination system)
7. प्रजनन तंत्र (Reproductive system)


1. अध्यावर्णी तंत्र (Integmentary system)- त्वचा (skin) शरीर का बाह्यतम आवरण है | जो संपूर्ण शरीर को ढकता है | इसका पृष्ठ लगभग 1.5 मीटर स्क्वायर से 2.0 मीटर स्क्वायर तक होता है | तथा यह संपूर्ण शरीर के भाग का लगभग 6 से 7% भाग होता है | इस प्रकार त्वचा मानव शरीर का सबसे बड़ा अंग है | इसमें अनेक प्रकार की संरचनाएं तथा ग्रंथियां होती हैं | इस संपूर्ण अंग को अध्यावर्णी तंत्र कहते हैं |


 त्वचा की संरचना- त्वचा की दो परतें होती हैं | 
1. बाह्यतम, निर्जीव पर्त, जिसे बाहरी त्वचा (epidermis) कहते हैं |
2. आंतरिक सजीव पर्त जिसे त्वचा (dermis) कहते हैं |


skin of structure human body
skin of structure human body


(1) बाह्य त्वचा (Epidermis)- यह त्वचा की वह पर्त है जो बाहर से दिखाई देती है | यह अनेक प्रकार की त्वचा कोशिकाओं (epithelial cell) से निर्मित होती है जो कई परतों में व्यवस्थित होती हैं | बाह्य त्वचा एक निर्जीव ऊतक है क्योंकि इसमें रुधिर वाहिनी या नहीं होती | शरीर के कुछ भागों में जैसे हथेली, एड़ी तथा तलवा, में यह पर्त बहुत कठोर हो जाती है | बाह्य त्वचा में किरेटिन (keratin) नामक अविलेय पदार्थ होता है जो जठर (gastic) अथवा अग्न्याशयी (pancreatic) रात में भी नहीं घुलता, इस प्रकार एपिडर्मिस शरीर की रक्षा करने वाली दृढ़ पर्त है |
       बाह्य त्वचा की तीन पर्तें हैं |
¡. बाह्यतम शल्की पर्त (Outermost cornified layer)
¡¡. माध्यिक दानेदार पर्त (Middle granular layer)
¡¡¡. आंतरिक मालपिघियन पर्त (Innermost malpighian layer)


बाह्यतम शल्की पर्त- यह बाहरी त्वचा की सबसे बाहरी पर्त है यह ऐसी चपटे आकार की मृत कोशिकाएं होती हैं, जिनमें केंद्रक अनुपस्थित होते हैं | यह कोशिकाएं एक दूसरे के ऊपर क्रम से स्थित होती हैं तथा इनके बीच का अस्थान किरेटिन से भरा होता है, किरेटिन एक प्रकार का प्रोटीन है जो त्वचा के अनेक ऊतकों जैसे रोम तथा बाल, पंख, नख, सींग, पशुओं की टॉप (hoofs) तथा रेशम का आधारिक पदार्थ है |
             इस पर्त की मोटाई, शरीर के भाग के अनुसार न्यूनाधिक होती है | 
             इसका सबसे पतला भाग नेत्र पलकों के बाहरी भाग में होता है तथा सबसे मोटा भाग हथेलियों एवं तलवों में पाया जाता है | यह पर्त शरीर के आंतरिक गुहाओं, जैसे आहार नाल की आंतरिक त्वचा अथवा श्लेष्मिक झिल्ली (Mucous membrane) को छोड़कर संपूर्ण शरीर में होती है |यह पर्त त्वचा की माध्यमिक कोशिकाओं को आघात से होने वाली क्षति, जीवाणु - जनित संक्रमण तथा वाष्पन के कारण सूखने से बचाती है |
                    


human skin longitudinal section
human skin longitudinal section



 बाहरी एपीथिलियम या बाहरी शल्क पर्त की अन्य वस्तुओं से घर्षण के कारण निरंतर झड़ती रहती है तथा त्वचा की भीतरी परतों से आने वाली नवीन कोशिकाओं के आने के बाद भीतरी त्वचा के मृत होने पर बाह्य त्वचा बनती है |


माध्यिक दानेदार पर्त- यह बाहरी त्वचा के ठीक नीचे की पतली परत होती है जो पतली तथा चपटे आकार की सजीव कोशिकाओं की तीन से पांच कोशिका-पखों द्वारा निर्मित होती है | इस परत की कोशिकाएं ग्लाइकोलिपिड नामक जल रोधी पदार्थ से घिरी होती है | यह पदार्थ त्वचा से जल के ह्रास को रोकता है | यह पर्त धीरे-धीरे कठोर होकर मृत कोशिकाओं की बाह्यतम पर्त ने बदलती रहती है |


 अंतरतम मालपीघियन परत- यह त्वचा की सबसे भीतरी परत होती है जिसकी कोशिकाएं सक्रिय रूप से विभाजित होकर नवीन कोशिकाओं का निर्माण करती हैं | यह नवीन कोशिकाएं बाहर की ओर गति करते हुए दानेदार तथा अंततः बाहरी पंक्ति की कोशिकाओं का स्थान लेती है |
             बाह्य त्वचा की यह पर्त अपने नीचे स्थित त्वचा (dermis) से दृढ़तापूर्वक जुड़ी रहती हैं | इस परत में मेलेनिन नामक काले रंग का पदार्थ भी होता है, जो त्वचा को उसका रंग देता है तथा सूर्य के पराबैगनी किरणों को अवशोषित करके शरीर की रक्षा करता है | सूर्य के प्रकाश में शरीर के अधिक समय तक उद्भासन (exposure) से त्वचा में मेलेनिन का निर्माण भी होता है, जिसके कारण सूर्य के प्रकाश में देर तक रहने से शरीर की त्वचा और अधिक गहरे रंग की हो जाती है | यह पदार्थ त्वचा कोशिकाओं के D.N.A की रक्षा भी करता है |


(2) त्वचा (Dermis)- त्वचा की आंतरिक परत बाह्य त्वचा (Epidermis) के नीचे स्थित होती है | यह कुछ मोटी परत है जो लचकदार तंतुओ से बने संयोजी ऊतकों से निर्मित होती है | आंतरिक त्वचा ही त्वचा की वह सजीव परत है, जिसमें त्वचा की अधिकांश क्रियाओं का संपादन होता है | त्वचा में उसकी कोशिकाओं को पोषण उपलब्ध कराने वाली रुधिर वाहिनियों की प्रचुरता होती है | ये रुधिर वाहिनियाँ शरीर के ताप का नियंत्रण भी करती हैं |
        आंतरिक त्वचा में तंत्रिका तंतु, संवेदी तंत्रिकाएं, रोमो तथा बालों की जड़ें तथा स्वेद ग्रंथियां भी होती हैं |
 

बाह्य त्वचा की पुनः दो पर्तें होती हैं- अंकुरित पर्त (Papillary layer) तथा जालिकीय पर्त (Reticular layer)


1. अंकुरित पर्त- यह आंतरिक त्वचा की पतली बाहरी पर्त है, जो रुधिर वाहिनियों (कोशिकाओं) तथा संयोजी ऊतकों से बनती हैं | इसके ऊपरी पृष्ठ पर अनेक, फुंसियों; जैसे- अंकुर उभरे होते हैं, जिन्हें त्वचीय अंकुर (Dermal papillae) कहते हैं | इसमें संवेदी तंत्रिकाओ के अंतिम सिरे होते हैं, जो स्पर्श, ताप तथा आघात के प्रति संवेदी होते हैं एवं संवेदी संकेतों को मस्तिष्क तक पहुंचाते हैं | इस प्रकार त्वचा एक संवेदांग (Sensory organ) का भी कार्य करती है | 


2. जालिकीय पर्त- यह त्वचा की सबसे भीतरी मोटी पर्त है, जो आंतरिक त्वचा का लगभग 30% भाग होती है | त्वचा की संपूर्ण मोटाई इसी पर्त की मोटाई पर निर्भर करती है | यह पर्त शरीर के भीतरी अंगों जैसे अतिथियों एवं पेशियों से एक अन्तः त्वचीय पर्त द्वारा जुड़ी रहती है |
           जालिकीय पर्त में विशेष प्रकार की कोशिकाएं, जिन्हें तंतु कोशिकाएं कहते हैं; यह कोशिकाएं कोलाजन तथा इलास्टिन तंतुओ के निर्माण में सहायक होती हैं | कोलाजन तंतु त्वचा ऊतकों की दृढ़ता को तथा इलास्टिन तंतु त्वचा के लचीलेपन को बनाए रखते हैं |
 

आधोत्वचा (Hyperdermis)- त्वचा के नीचे शिथिल संयोजी ऊतकों की पर्त होती है, जिसे आधोत्वचा करते हैं | यह त्वचा का भाग तो नहीं होती, परंतु इसका कार्य त्वचा को शरीर के भीतरी अंगों के ऊतकों से जोड़ने का होता है | इस पर्त में वसा भी होती है, जो शरीर की बाह्य आघातों से रक्षा करने तथा शरीर की ऊष्मा को बाह्य जाने से रोकने में, ऊष्मा अवरोधक का कार्य करती है |


त्वचा के उत्पाद (Derivatives of skin)- अध्यावर्णी तंत्र में त्वचा से संबंध अन्य ऊतक तथा ग्रंथियां भी सम्मिलित हैं, जो निम्नलिखित हैं-
 रोम तथा बाल
 नख 
 स्वेद ग्रंथियां
 तैलीय ग्रंथियां
 स्तन ग्रंथियां


1. रोम तथा बाल (Hairs)- ये त्वचा की मालपीघियन कोशिकाओं से उत्पन्न होते हैं | इन कोशिकाओं से बालों की जड़े होते हैं | बाल मुख्यतः दृढ़ किरेटिन से बनते हैं | इसके मुख्यतः तीन भाग : जड़, स्तंभ तथा बाल होते हैं | त्वचा से बाहर निकला भाग स्तंभ तथा त्वचा के भीतर जुड़ा हुआ भाग जड़ होता है | इसका सबसे निचला भाग बल्ब होता है जो जड़ के भीतर स्थित होता है | जड़ के भीतर बल्ब में स्थित अंकुर से रुधिर कोशिकाए प्रवेश करती हैं, जो इसे पोषण पहुंचाती हैं | जड़ के चारों ओर संवेदी तंत्रिकाओ के सीरे भी होते हैं जो बाल को खींचने या उखाड़ने पर दर्द का अनुभव उत्पन्न करते हैं |


structure of hair
structure of hair


 
2. नख (Nails)- नख, बाह्य त्वचा के रूपांतरण से बनाते हैं | ये हाथों तथा पैरों की उंगलियों के सिरों के ऊपरी तल की सुरक्षा करते हैं | इनकी वृद्धि नख की जड़ों में स्थित मृत कोशिकाओं के बाहर की ओर धकेले जाने से होती है |


3. स्वेद ग्रंथियां (Sweat glands)- यह ग्रंथियां शरीर की पूरी त्वचा (केवल चूंचुकों (Nipples) तथा पुरुष जननांग की बाहरी त्वचा को छोड़कर) में स्थित होती हैं | व्यक्ति में इनकी संख्या लगभग 20 से 25 लाख तक होती है | हथेलीयों और तलवों की त्वचा में इनकी प्रचुरता होती है | प्रत्येक स्वेद ग्रंथि एक कुंडलीकृत नलिका के रूप में होती है जिसका कीप-आकृति ऊपरी सिरा त्वचा की बाहरी पर्त में खुलता है | ये नलिकाए अपने आस-पास की रुधिर केशिकाओं एवं कोशिकाओं से लवणयुक्त जलीय तरल जिसे स्वेद कहते हैं को अवशोषित करके स्वेद के रूप में निर्गत करती है |


4. स्तन ग्रंथियां (Mammary glands)- मानव के वक्ष के दोनों ओर पेशियों के नीचे ये विशेष प्रकार की ग्रंथियां होती हैं, जो मादा में दूध का उत्पादन करती हैं | नर में यह ग्रंथियां अल्पविकसित होती हैं तथा कार्य नहीं करती हैं ये ग्रंथियां दुग्ध नलिकाओं से जिनके बाहरी सिरे चूंचुक में खुलते हैं, दुग्ध निर्गत करती हैं |


5. तैलीय ग्रंथियां (Sebaceous glands)- हथेलियों एवं तलवों को छोड़कर, ये ग्रंथियां पूरे शरीर की त्वचा के नीचे पाई जाती हैं इसका आकार हाथ पैरों तथा धड़ पर कम होता है परंतु चेहरे गर्दन तथा वक्ष के ऊपरी भाग में इसका आकार बड़ा होता है | इनके सिरे बालों की जड़ों में खुलते हैं, जिनसे एक चिकना तैलीय तरल निर्गत होता है जो त्वचा की ऊपरी पर्त को चिकना रखता है |

SHARE

Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

  • Image
  • Image
  • Image
  • Image
  • Image
    Blogger Comment
    Facebook Comment

2 comments: